- पोषण की कमी के कारण किशोरियों में एनीमिया और कुपोषण की बढ़ती है संभावना.
- वर्ष 2022 तक एनीमिया में 9 प्रतिशत की कमी लाने का रखा गया है लक्ष्य.
एक्सप्रेस न्यूज़, बक्सर: किशोरावस्था में निरंतर शारीरिक एवं मानसिक बदलाव होते हैं. इसलिए इस दौरान बेहतर मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य की जरूरत बढ़ जाती है. इसको लेकर जिले में किशोरियों के बेहतर स्वास्थ्य एवं सुरक्षित भविष्य के लिए विभिन्न योजनाएं संचालित है. जिनमें से एक राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम योजना भी शामिल है. इस कार्यक्रम के तहत स्वच्छता, पोषण, मानसिक स्वास्थ्य, किशोरों में व्यसन, मासिक चक्र की पूर्ण जानकारी, एनीमिया के लक्षण व बचाव की जानकारी, खान-पान एवं संतुलन आहार के बारे में परस्पर चर्चा के माध्यम से जानकारी दी जाती है. साथ ही, आंगनबाड़ी केन्द्रों पर प्रत्येक बुधवार को वितरण की जाने वाली आयरन की गोलियां दी जाती हैं. यह कार्यक्रम किशोरियों के स्वास्थ्य मिशन को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है. यह उनकी क्षमताओं का एहसास करा कर उन्हें उनके स्वास्थ्य एवं भलाई संबंधी फैसले लेने में मदद भी करती है.
किशोरियों के स्वास्थ्य के लिए होना होगा जागरूक :
अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. नरेश कुमार ने बताया किशोरियों के शरीर में 10 से 19 आयु वर्ग में बदलाव आता है. इस दौरान उन्हें कई प्रकार के नई जानकारी तथा समस्याओं से रूबरू होना पड़ता है. इसी क्रम में उनमें खून की कमी की भी शिकायत हो सकती है. जो आगे चलकर एनीमिया या गंभीर एनीमिया के रुप में सामने आती है. इस रोग से पीड़ित किशोरी में कुपोषण आदि भी होने की संभावना अधिक होती है. ऐसे में हम सभी को इसके प्रति जागरूक होकर बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है. इसको लेकर साप्ताहिक आयरन फोलिक एसिड अनुपूरण कार्यक्रम के तहत किशोरियों को आयरन एवं फोलिक एसिड की दवा सप्ताह में एक गोली दी जाती है.
समुदाय में एनीमिया को लेकर जागरूकता की कमी :
किशोरियों में एनीमिया के खिलाफ सरकार युद्धस्तर पर कार्य कर रही है. इसके लिए सरकार द्वारा पोषण अभियान की भी शुरुआत की गई है, जिसके तहत वर्ष 2022 तक एनीमिया में 9 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है. साथ ही इस वर्ष भारत सरकार द्वारा एनीमिया मुक्त भारत अभियान की भी शुरुआत की गई है. उन्होंने बताया एनीमिया का मुख्य कारण समुदाय में इसको लेकर जागरूकता की कमी है. लोगों के व्यवहार परिवर्तन के लिए सामुदायिक स्तर पर अनेकों प्रयास भी किए जा रहे हैं. किशोरियों में खून की कमी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं खड़ी करती है. किशोरी ही भविष्य में मां बनती है. इसलिए किशोरावस्था में उनका बेहतर स्वास्थ्य सुखद एवं स्वस्थ मातृत्व के लिए जरूरी हो जाता है.
किशोरावस्था में होते हैं महत्वपूर्ण शारीरिक बदलाव :
एकीकृत बाल विकास सेवा विभाग की जिला प्रोग्राम पदाधिकारी तरणि कुमारी ने कहा जब बच्चियां बाल्यावस्था से किशोरावस्था में प्रवेश करती हैं, तो यह समय उनके लिए बेहद अहम रहता है. हार्मोनल परिवर्तन के कारण वह महत्वपूर्ण शारीरिक बदलाव के दौर से गुजरती हैं. इसका सीधा असर उनके कोमल मन पर पड़ता है. बच्चियां संकोच के कारण मां से इस विषय पर खुलकर चर्चा नहीं करती हैं. जबकि उन्हें यह पता नहीं होता है कि इस दौरान वे क्या सावधानी बरतें, क्या करें और क्या न करें. ऐसे समय में बालिकाएं संकोच न करें और सारी बातें मां से खुलकर करें, साथ ही मां भी बेटियों की सहेलियां बनें.
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