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छह माह से उपर के बच्चों को अनुपूरक आहार है जरूरी




- शारीरिक व मानसिक विकास के साथ बाल कुपोषण रोकने में अनुपूरक आहार की अहम भूमिका.

- पोषण माह में भी अन्नप्राशन एवं टीएचआर के जरिए अनुपूरक आहार की दी जा रही है जानकारी.



एक्सप्रेस न्यूज़, बक्सर : वैसे तो नवजात व छोटे बच्चों के पोषण का हमेशा अनिवार्य रूप से ध्यान रखना चाहिए. लेकिन, कोरोना काल में इनके पोषण का ध्यान रखना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है. ताकि, वह कोरोना सहित किसी भी प्रकार के संक्रमण से लड़ने में सक्षम हो. बाल कुपोषण को कम करने में अनुपूरक आहार की अहम भूमिका होती है. एकीकृत बाल विकास योजना की जिला प्रोग्राम अधिकारी तारणी कुमारी ने बताया छह माह तक शिशु का वजन लगभग दो गुना बढ़ जाता है एवं एक वर्ष पूरा होने तक वजन लगभग तीन गुना एवं लम्बाई जन्म से लगभग डेढ़ गुना बढ़ जाती है. जीवन के दो वर्षों में तंत्रिका प्रणाली एवं मस्तिष्क विकास के साथ सभी अंगों में संरचनात्मक एवं कार्यात्मक दृष्टिकोण से बहुत तेजी से विकास होता है. इसके लिए अतिरिक्त पोषक आहार की जरूरत होती है. इसलिए छह माह के बाद शिशुओं के लिए स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार की जरूरत होती है. उल्लेखनीय है कि जिले में राष्ट्रीय पोषण माह का भी आयोजन किया गया है. जिसके तहत सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर अन्नप्रासन एवं टीएचआर के जरिए अनुपूरक आहार की जानकारी दी जा रही है.

घर में मौजूद खाद्य पदार्थों का करें उपयोग:

एकीकृत बाल विकास योजना की जिला प्रोग्राम अधिकारी तारणी कुमारी ने बताया शिशु के लिए प्रारंभिक आहार तैयार करने के लिए घर में मौजूद मुख्य खाद्य पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है. सूजी, गेहूं का आटा, चावल, रागी, बाजरा आदि की सहायता से पानी या दूध में दलिया बनाया जा सकता है. बच्चे की आहार में चीनी अथवा गुड को भी शामिल करना चाहिए. इनसे उन्हें अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है. छह से नौ माह तक के बच्चों को गाढ़े एवं सुपाच्य दलिया खिलाना चाहिए. वसा की आपूर्ति के लिए आहार में छोटा चम्मच घी या तेल डालना चाहिये. दलिया के अलावा अंडा, मछली, फलों एवं सब्जियों जैसे संरक्षक आहार शिशुओं के विकास में सहायक होते हैं. 

छह माह से उपर के बच्चों को अनुपूरक आहार जरूरी:

जिला स्वास्थ्य समिति के सिविल सर्जन डॉ. जितेंद्र नाथ ने बताया शिशु के जीवन के प्रथम दो वर्ष की अवधि में शिशु को मिलने वाला पोषण उसके सम्पूर्ण विकास में महत्वपूर्ण होते हैं. उन्होंने बताया शिशु के जन्म के एक घंटे के भीतर मां का गाढ़ा पीला दूध नवजात शिशु के लिए पहला सर्वोतम आहार है. इसमें कई संक्रमण-रोधी तत्त्व होते हैं. इसे कॉलोस्ट्रम कहा जाता है. साथ ही 6 माह तक केवल स्तनपान कराना चाहिए, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और कई प्रकार के रोगों से बचाने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है. परंतु, छह माह से उपर के बढ़ते शिशुओं को उनके बढ़ते उम्र के हिसाब से कैलोरी की जरूरत होती है. इस दौरान बच्चे का शारीरिक एवं मानसिक विकास काफी तेजी से होता है. जो केवल स्तनपान से पूरा नही हो पाता. इसलिए छह माह से उपर के बढ़ते शिशुओं को घर में बने साधारण भोजन को दिन में पांच से छह बार थोड़ा-थोड़ा कर के खिलाना चाहिए.

इन बातों का रखें ख्याल:


• 6 माह बाद स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार शिशु को दें.
• स्तनपान के अतिरिक्त दिन में 5 से 6 बार शिशु को सुपाच्य खाना दें.
• शिशु को मल्टिंग आहार(अंकुरित साबुत आनाज या दाल को सुखाने के बाद पीसकर) दें.
• माल्टिंग से तैयार आहार से शिशुओं को अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है.
• शिशु यदि अनुपूरक आहार नहीं खाए तब भी थोडा-थोडा करके कई बार खिलाएं.


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