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गर्भावस्था में एनीमिया की शिकायत महिलाओं के लिए घातक..



- प्रसव पूर्व जांच एनीमिया प्रबंधन में सहायक, जागरूकता से ही मातृ मृत्यु दर में आयेगी कमी 
- प्रसव के दौरान अधिक रक्त स्त्राव के कारण बढ़ती हैं मुश्किलें
एक्सप्रेस न्यूज़, बक्सर: स्वस्थ शिशु के जन्म और प्रसव के दौरान प्रसूता को किसी प्रकार की परेशानी का खतरा दोनों ही गर्भावस्था के दौरान बेहतर स्वास्थ प्रबंधन पर निर्भर करता है. वहीं, गर्भावस्था में बेहतर शिशु विकास एवं प्रसव के दौरान होने वाली रक्त स्त्राव के प्रबंधन के लिए महिलाओं में पर्याप्त मात्रा में खून होना आवश्यक होता है. ऐसे में एनीमिया प्रबंधन के लिए प्रसव पूर्व जांच के प्रति महिलाओं की जागरूकता ना सिर्फ एनीमिया रोकथाम में सहायक होती है बल्कि सुरक्षित मातृत्व की आधारशिला भी तैयार करती है. इसलिए गर्भावस्था में एनीमिया प्रबंधन बहुत जरूरी होता है. गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में खून की कमी उनके व उनके बच्चे के लिए खतरे की घंटी है. 
शिशु के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है खून की कमी का असर : 
स्त्री रोग विषेशज्ञ डॉ. नमिता सिंह ने बताया गर्भावस्था में महिलाओं को सामान्य से अधिक खून की जरूरत होती है. गर्भ में पल रहे शिशु के लिए माता का स्वस्थ होना जरूरी होता है. माता के ही माध्यम से शिशु को पोषण प्राप्त होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार गर्भावस्था के दौरान खून की कमी होने से शिशु के स्वास्थ्य पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ता है. गर्भावस्था के दौरान महिला के एनेमिक होने से शिशु के वजन में कमी, एनेमिक नवजात का जन्म, जन्म के साथ शिशु जटिलता में बढ़ोतरी एवं उम्र के साथ शिशुओं में सही मानसिक एवं शारीरिक विकास में कमी आती है.
जागरूकता से बचाव संभव:
सिविल सर्जन डॉ. जितेंद्र नाथ ने कहा एनेमिक महिलाओं को तीन श्रेणी में रखा जाता है. 10 ग्राम से 10.9 ग्राम खून होने पर माइल्ड एनीमिया, 7 ग्राम से 9.9 ग्राम खून होने पर मॉडरेट एनीमिया एवं 7 ग्राम से कम खून होने पर सीवियर एनीमिया होता है. एनेमिक महिलाओं की जाँच के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण दिवस एवं प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान पर प्रसव पूर्व जाँच के माध्यम से एनेमिक गर्भवती महिलाओं की जाँच की जा रही है एवं साथ ही सामुदायिक स्तर पर गर्भवती महिलाओं को बेहतर खान-पान के बारे में भी जानकारी दी जा रही है. उन्होंने बताया महिलाओं के बीच एनीमिया के विषय में सम्पूर्ण जानकारी से प्रसव के दौरान होने वाली मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लायी जा सकती है. साथ ही बताया यदि गर्भवती महिला में खून की मात्रा 7 ग्राम से कम होती है तब महिला गंभीर एनेमिक की श्रेणी में शामिल हो जाती है. इस स्थिति में सुरक्षित प्रसव के लिए प्रथम रेफरल यूनिट में ही प्रसव कराना चाहिए. जटिल प्रसव के कुशल प्रबंधन के लिए खून चढाने की भी जरूरत हो सकती है एवं इसके लिए प्रथम रेफेरल यूनिट में ब्लड ट्रान्सफ्यूज़न की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है. 

क्या कहते हैं आंकड़े: 
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़ों के अनुसार जिले में 15 से 49 वर्ष के मध्य आयु की 49.2 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं. गर्भावस्था में 4 प्रसव पूर्व जांच नहीं कराना एनीमिया का प्रमुख कारण है. आंकड़ों के अनुसार जिले में कुल 23.3 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं ही 4 प्रसव पूर्व जांच कराती हैं. इसमें सुधार हेतु स्वास्थ्य विभाग अनवरत प्रयासरत है.

एनिमिया के साथ कोरोना संक्रमण के लिए प्रबंधन जरूरी : 
सिविल सर्जन डॉ. जितेंद्र नाथ ने कहा जिले में कोरोना का संक्रमण का खतरा अभी भी बरकरार है. ऐसे में गर्भवती महिलाओं को विशेष देखभाल की जरूरत है. घर में आने वाले बाहरी लोगों के संपर्क न आने दें. साथ ही, गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ परिवार के लोग भी कोविड-19 के सामान्य नियमों का पालन करें. मास्क व शारीरिक दूरी का सख्ती से पालन करे. ताकि, संक्रमण के खतरे से गर्भवती महिलाओं को बचाया जा सके.





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